अक्सर मैं खुद से बात करती हूँ
हर पल मैं तुझ को याद करती हूँ
एहतियातन रहती हूँ आजकल थोड़ी सज धज कर
ख़्वाबों में मुलाक़ात का इंतज़ार करती हूँ
वक़्त गुज़रता है कुछ इस तरह ही आजकल
इस तरह ही रूह को आबाद करती हूँ
रहता है कुर्रा-ऐ-अर्ज़ में इक अजब सा नशा
ना चाह कर भी तेरे होने का इश्तियाक करती हूँ
कभी ईद कभी दिवाली कभी सालगिरा का बहाना
तुमसे बात करने की रोज़ तर्किबें इजाद करती हूँ
कुर्रा-ऐ-अर्ज़ : Atmosphere
इश्तियाक : Desire
तर्किबें : Ideas
इजाद : Invent
I usually don’t understand the depth of poems much. anyways whatever I understood wah wah for that 😉
keep writing 🙂
thnxx for ur spirit of reading the stuff u dnt understand…and thnx for ur wah wah as well…
keep visiting 🙂
Kya likha hai!
Dil ko chu jata hai aapki kavita!
Thanx a lot DS…. 🙂
बहुत सुंदर ! 🙂
खुद से बात करो जरूर
पर बताओ मत हजूर
डाक्टर को पता चला
खाने को बोलेगा खजूर !
तो खाने को बोलेगा
its so touchy na..
Thnxxxx a lot dear….. 🙂
wonderfulll…..
there r few ocasions wen we r able to express so exactly…
कभी ईद कभी दिवाली कभी सालगिरा का बहाना
तुमसे बात करने की रोज़ तर्किबें इजाद करती हूँ.
enjoyed a lot
thnx.,…..
thanx a lot for ur wonderful words….this appreciation mean a lot to me…!!